Monday, November 24, 2014

खामोशी की सहृदय नर्स राधा


यूं तो असित सेन निर्देशित फिल्म खामोशी पूरी ही फ्रेम -दर-फ्रेम दिल को छूती है, लेकिन इसका एक किरदार ऐसा है जो आपकी आत्मा को छूता है वो है इस की सहृदय नर्स राधा...

राधा एक मेंटल हॉस्पिटल मे काम करती है और बेहद संवेदनशील है.देव नमक एक मनोरोगी जो किसी लडकी के प्रेम मे धोखा खाकर उनके हॉस्पिटल मे आया है, राधा के प्यार और अपनेपन से ठीक हो जाता है .

राधा उसे ठीक करने की कोशिश मे खुद ही उससे प्यार करने लग जाती है. उस की भावनाओं से अनभिज्ञ देव हॉस्पिटल से बहार आकर अपनी नॉर्मल लाइफ मे रम जाता है और राधा को भुला देता है.

कुछ अर्से बाद अरुण नाम का एक और पेशेंट वहाँ आता है. इस बार राधा उसका केस लेने से मन कर देती है. मगर दूसरी नर्स के उसे ना संभल पाने की मज़बूरी के चलते राधा को ही अरुण को सँभालने के लिए आगे आना पड़ता है.

इस बार वो पूरी कोशिश करती है की बिना इमोशनल हुये वो अपना फ़र्ज़ निभाए लेकिन वो एक मशीन नहीं है. एक बार फिर उसे अरुण से प्यार हो जाता है ओर वो उसे ठीक करने मे सफल हो जाती है अपने पिछले अनुभव याद करते हुए वो बार बार खुद को याद दिलाती है की उसे सिर्फ अपनी जिम्मेदारी निभानी है.  प्यार करना उस के काम का हिस्सा नहीं है.

अरुण ठीक होने के बाद राधा को प्यार करने लगता है, पर तब तक अपने अंतर्द्वंद के कारण राधा अपना मानसिक संतुलन खो चुकी होती है.

कर्तव्य और भावनाओं के द्वंद में घिरी एक अति संवेदनशील नर्स की भूमिका को बीते ज़माने की मशहूर अभिनेत्री वहीदा रहमान ने इस क़दर शिद्दत से अंजाम दिया है की इस रोल में उनके सिवा किसी और अभिनेत्री की कल्पना कठिन है.

Monday, November 17, 2014

सिद्वांत ऑफ़ ' दिल चाहता है '


फरहान अख्तर की फिल्म 'दिल चाहता है' एक ऎसी रचना है, जिसमें तीन अलग-अलग फितरत वाले दॊस्तॊं के माध्यम से प्यार के तीन अलग-अलग रूप दिखाए गए हैं. एक आकाश है, जॊ प्यार नाम की किसी चीज में विश्वास नहीं करता . दूसरा समीर है, जॊ हर उस लड़की से प्यार करने लग जाता है जिसके वह सम्पर्क में आता है . लेकिन, इन्हीं के बीच एक सिद्धांत भी है जॊ प्रेम की दिव्यता में विश्वास करता है. यही वजह है कि यह किरदार इस फिल्म के दूसरे सभी किरदारॊं से ज्यादा प्रभावित करता है.

सिद्धांत उर्फ सिड उम्र में अपने से काफी बड़ी महिला तारा से प्रेम करता है .उसका प्रेम नितांत अशरीरी है . वह एक भावनात्मक निर्भरता है, एक साथ की अनुभूति है. तारा से अपने प्रेम कॊ वह सामाजिक वर्जनाओं से ऊपर मानता है .वह अपनी माँ के विरॊध कॊ नहीं मानता, आकाश द्वारा मजाक बनाए जाने पर उससे दॊस्ती तॊड़ देता है.

फिल्म के एक प्रभावशाली दृश्य में जब आकाश उससे कहता है कि उसके तारा से ऎश कर लेने में कॊई बुराई नहीं है तॊ वह उसे एक थप्पड़ मारता है और बताता है कि प्यार उसके लिए कितनी ऊँची चीज है. इससे पता चलता है कि सिड का प्यार क्यॊं सम्मान किए जाने लायक है. हर उस दृश्य में ,जिसमें वह तारा के साथ नजर आता है, हम प्रेम की महानता कॊ महसूस कर सकते हैं .

कुल मिलाकर सिड एक ऎसा सशक्त किरदार है ,जॊ नए जमाने की फिल्मॊं में मुश्किल से ही नजर आता है। इसे अनूठे पात्र की रचना के लिए निदेशक फरहान अख्तर और अपने सशक्त अभिनय से इसमें प्राण फूंकने वाले अक्षय खन्ना बधाई के पात्र हैं.

Saturday, November 15, 2014

किरदार


हर साल हजारॊं फिल्में बनती हैं‍ उनमें से कुछ ही याद रहती हैं बाकी भुला दी जाती हैं लेकिन, इनमें भी ऐसे किरदार उंगलियॊं पर गिने जा सकते हैं जॊ याद रखने लायक हॊं वर्ना तॊ सभी एक सरीखे लगते हैं.

हमारा यह ब्लाॅग ऐसे ही यादगार किरदारॊं के लिए समर्पित है . इसमें गब्बरसिंह या मॊगेंबॊ जैसे टेलरमेड करेक्टर्स नहीं बल्कि ऐसे किरदारॊं की बात हॊगी जॊ अपनी साधारणता में भी असाधारण बन गए हैं.

इस क्रम में हमने जिन किरदारॊं कॊ चुना है वे किसी भाषा विशेष तक सीमित नहीं है बल्कि हिंदी समेत तमाम भारतीय भाषाओं और विदेशी फिल्मॊं से निकलकर सामने आते हैं. आप भी यदि किसी ऐसे यादगार किरदार के बारे में हमें बताएं तॊ हमें खुशी हॊगी.