Sunday, December 14, 2014

अपने ही अहं का शिकार


अहं या ईगो, एक ऐसी नामाकूल शय है, जो किसी भी खूबसूरत रिश्ते को तबाह कर देती है. हृषिकेष मुखर्जी की अभिमान यही संदेश देती है, जिसका नायक सुबीर अपनी असफलता को स्वीकार करने में हेठी महसूस करने वाले पुरुष अहं का एक ऐसा प्रतीक है, जो करीब साढ़े तीन दशकों बाद भी अपनी प्रासंगिकता को बरकरार रखे हुए है.
अपने अकेलेपन को महसूस करने के बावजूद इसे स्वीकार न करने वाला सुबीर एक मशहूर गायक है, जिसकी आवाज की दीवानी दुनिया है, लेेकिन खुद उसे तलाश है एक मन के मीत की, जिसके लिए वह हर जतन करने के लिए तैयार है.

एक दिन, इत्तेफाक उसे अपनी धाय मां के गांव ले आता है, जहां उसे अपने मन का मीत उमा के रूप में मिलता है. गांव की सादगी और संजीदगी की प्रतिमूर्ति उमा उसी की तरह संगीत को अपने मन-प्राण में बसाए हुए है. सुबीर के गानों की कद्रदान है तो वह है ही, साथ ही खुद भी गाने की शौकीन है. सुबीर और उमा का परिचय, कब प्रणय के रास्ते परिणय तक पहुंच जाता है, पता ही नहीं चलता.

दोनों एक साथ रहने लगते हैं. उमा की मधुर आवाजा सुबीर के क्लाइंट्स के कानों तक पहुंचती है तो वे पहले उसे सुबीर के साथ गाने के लिए मनाते हैं और फिर धीरे-धीरे अकेले गाने के लिए भी राजी कर लेते हैं. एक वक्त ऐसा आता है, जब सुबीर की मांग खत्म हो जाती है, लेकिन उमा को अनुबंधित करने वालों का तांता लगा रहता है. सुबीर कुंठित होने लगता है और धीरे-धीरे हम उसे एक प्रेमी से एक प्रतिद्वंद्वी में बदलते हुए देखते हैं.

नहीं, यह वह सुबीर नहीं है, जिसने कुछ अर्सा पहले अपने घर की बगिया में मिलन के गुल खिलाने के ख्वाब देखे थे. यह एक ईर्ष्यालु, अभिमानी और बद्मिजाज सुबीर है, जो अपनी असफलता को पचा नहीं पा रहा है. उसकी कुंठा उसे अपनी पत्नी, अपने दोस्तों और एक-एक कर सभी अपनों से दूर कर देती है और वह एकदम अकेला रह जाता है.
वह इस अकेलेपन को महसूस तो करता है, लेकिन अपने अहं के चलते, इसे स्वीकार नहीं करता. जीवन धीरे-धीरे अपनी गति से चलता रहता है और अकेलेपन का बोझ बढ़ता जाता है. 

यहां से हम तीसरे सुबीर को देखते हैं. एक अकेला-टूटा हुआ, पछतावो की आग में जलता हुआ सुबीर. लेकिन उसका अहं, अभी भी उसे झुकने, पहल करने से रोकता है. इसी बीच एक दुर्घटना में, उसके आंगन में खिलने वाला गुल, मुरझाकर गिर जाता है. सुबीर के पश्चाताप की अग्नि में उसका सारा अहंकार जलकर नष्ट हो जाता है और वह उमा को अपनी जिंदगी में वापस ले आता है.

सुबीर का किरदार, एक आम भारतीय पति की मानसिकता और पूरी तरह प्रतिध्वनित करता है. वहीं उसका अपनी गलती महसूस करना, उसे सुधारने की कोशिश करना उसे एक अच्छे इंसान के तौर पर भी पेश करता है. वह अडि़यल है तो अड़ा ही रहता है लेकिन जब बदलता है तो बदलता भी पूरी शिद्दत से है. इस बहुमुखी किरदार को अमिताभ ने अपने अभिनय से एक अनूठा आकर्षण और वजन दिया है, जो सिर्फ वही कर सकते हैं.

संदीप अग्रवाल

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